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अम्बेडकर नगर की धरती और नागवंशी राजभरों का स्वर्णिम इतिहास

 उत्तर भारत की प्राचीन ऐतिहासिक चेतना में जनपद अम्बेडकर नगर का विशेष स्थान रहा है। यह क्षेत्र केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैन्य दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। प्राचीन एवं मध्यकाल में यहाँ नागवंशी राजभर राजाओं का सशक्त शासन स्थापित था, जो श्रावस्ती के महान नरेश महाराजा सुहेलदेव राजभर के अधीन उनके वंशजों द्वारा संचालित किया जाता था। यह शासन व्यवस्था न केवल क्षेत्रीय स्थिरता का प्रतीक थी, बल्कि विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध स्थानीय प्रतिरोध की एक सशक्त परंपरा का भी प्रतिनिधित्व करती थी।

lorapur ashtakhambha


नागवंशी राजभर और उनका शासन तंत्र

नागवंशी राजभर राजाओं का शासन एक संगठित साम्राज्यात्मक ढाँचे पर आधारित था। इस साम्राज्य के अंतर्गत सरवरगढ़ और सोझावलगढ़ दो प्रमुख और शक्तिशाली राज्य थे। ये राज्य सैन्य, प्रशासनिक तथा धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र माने जाते थे। विशेष रूप से सरवरगढ़ को महाराजा सुहेलदेव राजभर का ननिहाल माना जाता है, जिससे इसकी राजनीतिक और भावनात्मक महत्ता और भी बढ़ जाती है।


इन राज्यों में स्थापित मंदिर, दुर्ग, स्तंभ और सांस्कृतिक प्रतीक नागवंशी परंपरा की पहचान थे। अष्टखम्भा (आठ स्तंभ) नागवंश का प्रमुख प्रतीक चिन्ह था, जो शक्ति, स्थायित्व और धार्मिक आस्था का द्योतक माना जाता था।


11वीं शताब्दी का संकट और सैय्यद सालार मसूद का आक्रमण

11वीं शताब्दी में जब उत्तर भारत अनेक विदेशी आक्रमणों से जूझ रहा था, तब नागवंशी राजभर राज्यों को भी एक भयानक संकट का सामना करना पड़ा। इस काल में आक्रान्ता सैय्यद सालार मसूद ने सरवरगढ़ और आसपास के क्षेत्रों पर आक्रमण किया। यह आक्रमण केवल सत्ता परिवर्तन के उद्देश्य से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक विनाश की मंशा से भी प्रेरित था।


इस युद्ध में तत्कालीन शासक राजा सोहनदल राजभर ने हजारों सैनिकों के साथ वीरतापूर्वक संघर्ष किया और अंततः वीरगति को प्राप्त हुए। सोहनदल राजभर का बलिदान नागवंशी इतिहास का एक अमर अध्याय है, जो यह दर्शाता है कि यह भूमि कभी भी बिना प्रतिरोध के विदेशी आक्रान्ताओं के अधीन नहीं हुई।


धार्मिक धरोहरों का विनाश

राजा सोहनदल राजभर की हत्या के पश्चात सैय्यद सालार मसूद ने इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को भारी क्षति पहुँचाई। विशेष रूप से भारशिव मंदिर और अष्टखम्भों को नुकसान पहुँचाया गया। यह विनाश केवल स्थापत्य का नहीं था, बल्कि नागवंशी पहचान और आस्था पर सीधा प्रहार था।


 महाराजा सुहेलदेव राजभर का प्रतिशोध और पुनर्स्थापना

राजभर इतिहास का सबसे उज्ज्वल पक्ष तब सामने आता है, जब महाराजा सुहेलदेव राजभर ने इस आक्रान्ता के विरुद्ध निर्णायक अभियान चलाया। उन्होंने सैय्यद सालार मसूद का वध कर नागवंशी साम्राज्य को पुनः सुरक्षित किया। इसके साथ ही, आक्रमण से प्रभावित राज्यों की पुनः स्थापना की गई।


इस पुनर्निर्माण प्रक्रिया में सोझावलगढ़ को भी संरक्षित किया गया। कालांतर में यहाँ राजा सोझावल राजभर का शासन स्थापित हुआ, जिन्होंने नागवंश के प्रतीक अष्टखम्भे का जीर्णोद्धार कर इसे पुनः सांस्कृतिक गौरव का केंद्र बनाया।


 16वीं शताब्दी: अकबर का आक्रमण और दूसरा महायुद्ध

इतिहास का पहिया एक बार फिर घूमता है। सन 1566 ई. में मुगल शासक अकबर ने इन नागवंशी राजभर राज्यों पर आक्रमण किया। यह युद्ध तीन दिनों तक चला और अत्यंत भयंकर था। इस संघर्ष में हजारों राजभर योद्धाओं के साथ महाराजा सुझावल राजभर ने वीरगति प्राप्त की।


यह युद्ध केवल सत्ता का संघर्ष नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता, स्वाभिमान और सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा का युद्ध था।


नाम परिवर्तन और ऐतिहासिक स्मृति का क्षरण

अकबर ने विजय के बाद दोनों राजभर राज्यों के नाम बदल दिए।

सोझावलगढ़ → अकबरपुर

सरवरगढ़ → जलालपुर

यह नाम परिवर्तन केवल प्रशासनिक नहीं था, बल्कि ऐतिहासिक स्मृति को मिटाने का प्रयास भी था। इसके बावजूद, नागवंशी इतिहास पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ।


अष्टखम्भा: जीवित इतिहास की धरोहर

आज अष्टखम्भा, जनपद अम्बेडकर नगर के अकबरपुर तहसील अंतर्गत लोरपुर में स्थित है। यह केवल पत्थरों की संरचना नहीं, बल्कि राजभरों के स्वर्णिम इतिहास की जीवित धरोहर है। यह उस संघर्ष, बलिदान और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है जिसे समय भी मिटा नहीं सका।


संरक्षण की मांग और आधुनिक घोषणाएँ

लंबे समय से राजभर संगठन और हिंदू संगठन इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण और सौंदर्याकरण की माँग करते रहे हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह जी तथा उसी वर्ष माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा मंच से इस धरोहर के संरक्षण एवं सौंदर्याकरण हेतु करोड़ों रुपये की घोषणा की गई। यह घोषणा न केवल ऐतिहासिक न्याय की दिशा में एक कदम है, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी संकेत देती है।


 निष्कर्ष

अम्बेडकर नगर का नागवंशी राजभर इतिहास शौर्य, बलिदान और सांस्कृतिक चेतना की एक अमिट गाथा है। यह इतिहास हमें यह सिखाता है कि सत्ता छीनी जा सकती है, नाम बदले जा सकते हैं, लेकिन संस्कृति और स्मृति को नष्ट नहीं किया जा सकता। अष्टखम्भा आज भी इस सत्य का साक्षी है।


FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)


प्रश्न 1: नागवंशी राजभर कौन थे?

उत्तर: नागवंशी राजभर उत्तर भारत के एक प्राचीन योद्धा वंश थे, जिनका शासन गंगा–घाघरा क्षेत्र में फैला हुआ था।


प्रश्न 2: सरवरगढ़ और सोझावलगढ़ का क्या महत्व था?

उत्तर: ये नागवंशी राजभर साम्राज्य के दो प्रमुख राज्य थे, जो सैन्य और सांस्कृतिक केंद्र थे।


प्रश्न 3: अष्टखम्भा क्या है?

उत्तर: अष्टखम्भा नागवंश का प्रतीक चिन्ह है, जो आठ स्तंभों वाली ऐतिहासिक संरचना है।


प्रश्न 4: महाराजा सुहेलदेव राजभर का योगदान क्या था?

उत्तर: उन्होंने सैय्यद सालार मसूद का वध कर नागवंशी राज्यों को पुनः स्थापित किया।


प्रश्न 5: आज अष्टखम्भा कहाँ स्थित है?

उत्तर: यह वर्तमान में अकबरपुर तहसील के लोरपुर क्षेत्र में स्थित है।


प्रश्न 6: सरकार द्वारा क्या घोषणा की गई है?

उत्तर: वर्ष 2024 में अष्टखम्भा के संरक्षण और सौंदर्याकरण हेतु करोड़ों रुपये की घोषणा की गई है।


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