सुल्तानपुर के राजा नन्द कुंवर भर का इतिहास

 

Nand Kuar Bhar

नमस्कार दोस्तों जय सुहेलदेव राजभर!

आज हम सुल्तानपुर के राजा नन्द कुंवर भर के इतिहास के बारे में इस लेख में जानने की कोशिश करेंगे तो इस लेख को पुरा पढ़ें।


यह इतिहास हर एक सुल्तानपुर के निवासी को जानना चाहिए  ११वीं-१२ वीं सदी में जब भारत लगातार अरब देशों के मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण झेल रहा था आम जनता उनकी दरिंदगी और जुल्म का शिकार हो रही थी उस समय मध्यप्रदेश के सागर से लेकर नेपाल की सरहद गोरखपुर तक, भदोही से लेकर बहराइच तक निडर, लड़ाकू, पराक्रमी शिवभक्त भरों का राज था।


भगवान शिव के  भक्त, युद्ध विद्या में निपुण, परम प्रतापी भरों को इसी वजह से ‘भारशिव’ व ‘राजभर’ भी कहा जाता है। सैकड़ों गढ़, दुर्ग व किले इन्हीं राजभरों के राज में थे। सुल्तानपुर भी उन्हीं में से एक था। तब वो सुल्तानपुर नहीं बल्कि ‘कुशपुर’ या ‘कुशभवनपुर’ हुआ करता था। ’गजेटियर ऑफ अवध’, सुल्तानपुर गजेटियर व इम्पीरियल गजट आदि अनेकों आधिकारिक किताबों में इसका जिक्र है। कुशभवनपुर या कुशपुर (मौजूदा सुल्तानपुर) में नंद कुंवर भर की सत्ता थी।


कुशपुर का किला मौजूदा शहर के उत्तर गोमती तट पर स्थित था। यह किला सामरिक दृष्टि से भर राजा नंदकुंवर का अभेद्य दुर्ग था।  लुटेरे महमूद गजनवी का भांजा सैय्यद सालार मसऊद गाजी भी अपने मामा से प्रेरित होकर अवध की समृद्धि और संपन्नता से ललचाया यवनों की विकराल सेना के साथ हाहाकार मचाता, लूटमार करता, गांव-नगर उजाड़ता आ पहुंचा। अयोध्या स्थित श्रीरामजन्मभूमि पर भी उसने कुदृष्टि डाली ! लेकिन बहराइच-श्रावस्ती में उससे मोर्चा लिया महापराक्रमी राजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में तत्समय के देशी रजवाड़ों की सेनाओं ने ! लोमहर्षक युद्ध में अनूठे रणकौशल से सुहेलदेव राजभर की सेना ने गाजी को मार गिराया।


इसलिए उसने अपने खास पांच सिपाहियों को राजा नंदकुंवर का भेद जानने व किले की व्यूहरचना की खबर लेने घोड़ों के व्यापारी के रूप में कुशपुर भेज दिया था। बदकिस्मती थी गाजी की..राजा नंदकुंवर के गुप्तचरों ने गाजी के सिपाहियों को सैय्यद महमूद व सैय्यद अलाउद्दीन आदि को पहचान लिया ! नतीजा,भरों ने उन्हें मार गिराया। इसतरह गाजी सुहेलदेव राजभर के हाथों श्रावस्ती में मारा गया और कुशपुर में नंदकुंवर के हाथों उसके सिपाही भी मारे गए  , दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी को जब गाजी के सिपाहियों की कुशपुर में की गई हत्या की जानकारी मिली तो वो गुस्से से उबल उठा।


उसने बड़ी विशाल सेना नंदकुंवर भर से मोर्चा लेने को भेज दी।जो करौंदिया के जंगलों में दूसरे तट पर साल भर डेरा डाले पड़ी रही। क्योंकि बरसात का मौसम था। इसके बाद कुशपुर किले पर खिलजी की फौज ने हमला बोला।..नंदकुंवर भर धोखे से मारे गए। इसी शिकस्त के साथ शिवभक्त भरों का साम्राज्य सदैव के लिये समाप्त हो गया। खिलजी ने कुशपुर(कुशभवनपुर) का नाम बदलकर ‘सुल्तानपुर’ रख दिया। 



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