भर राजा के शोक में 572 साल बाद भी नहीं मनाई जाती है होली

 

Bhar Raja Daldev

डलमऊ- होली हर्ष और उल्लास का त्यौहार है। इस दिन सभी लोग खुशी में जश्न मनाते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं। लेकिन रायबरेली डलमऊ के करीब 50 गांव है। जिसमे आज भी होली के दिन शोक का माहौल होता है और लोग गम में डूबे रहते हैं। इसके पीछे करीब 572  साल पुरानी ऐतिहासिक घटना  है, जिसके कारण आज भी लोग परम्परागत रूप से होली के दिन खुशी के बजाए शोक मनाते हैं।


पंद्रहवीं शताब्दी में भर राजा डलदेव जी थे  (भारशिवों )का साम्राज्य रायबरेली और प्रतापगढ़ जिलों में व्यापक रूप से फैल गया था। भर राजा डालदेव ने भारशिवों के राजा बनकर डलमऊ को अपनी राजधानी बनाई और इस क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की। जौनपुर के शासक इब्राहिम शाह शर्की को राजभरों की सत्ता चुभने लगी  थी। वह किसी भी कीमत में राजभरों को हटाना चाहता था। 


इतिहासकारों के मुताबिक इस समय तक भर राजा डलदेव बेहद शक्तिशाली हो चुके थे और रायबरेली में ही लगभग  25 किले  कोट का निर्माण उन्होंने कर लिया था। ऐसे में राजा डालदेव भर को हराना शर्की के लिए इतना आसान भी नहीं था। इसलिए वह सीधी लड़ाई न लड़कर मौके की तलाश करने लगा। षड्यंत्र के तहत बाबर की लड़की सलमा क़ो भेजा जाकर भर राजा डलदेव क़ो अपने प्रेम जाल मे फसाओ हुआ भी यही भर राजा डलदेव सलमा के प्रेमजाल मे फस भी गए ।


Daldev Rajbhar


इधर शर्की अपने गुप्तचरो द्वारा हर जानकारी रखता था ।आर्य ब्राह्मण ने कुछ धन की लालच मे सारी जानकारी शर्की क़ो देता रहा । भर राजा डलदेव होली बहुत धूमधाम से मनाते थे।  इस दिन उनके सैनिक भी अपने हथियारों को रखकर जश्न में डूबे रहते थे एसी खबर जब इब्राहिम शाह शर्की क़ो  मिली तब होली के ही दिन युद्ध करने की तैयारी किया । 1430 ईं. में होली के दिन आक्रमण कर दिया ! फिर भी भयंकर युद्ध हुआ भर राजा डलदेव की सेना गाजर मूली की तरह कटती जा रही थी !  तब किले के खुफिया रास्ते से अपनी पत्नी क़ो आदेश दिया की तुम नदी के रास्ते नाव से ऊसपार पुत्र राजकलश  क़ो लेकर चली जाओ अगर मुझे कुछ हो जाये तो पुत्र राजकलश क़ो बाद मे राजा बनाना !

 

भर राजा डलदेव कुछ सैनिको के साथ युद्ध करते हुए आगे बढ़ते गए उनकी पूरी सेना मारी गयी भीषण रक्तपात हुआ ..डलमऊ  किले से 3 किमी तक जाते जाते शर्की की सेना ने घेर लिया  वही पर भर राजा डलदेव .. वीरगति क़ो प्राप्त हुए !  आज भी उसी स्थान पर भर राजा डलदेव की मूर्ति लगी है जो आज भी प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है ।


सबूत और किताब


लेखक अमर सिंह अमरेश जी ने अपनी पुस्तक ..राजकलश ..मे विस्तृत वर्णन किया है 

दूसरे लेखक डा. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ने अपनी पुस्तक 

नौ लाख का टूटा हाथी मे ..होली का प्रतिशोध मे जबरदस्त वर्णन किया है ! 

रायबरेली जिला गजेटियर के पेज संख्या 25 में इस आक्रमण का विस्तृत उल्लेख मिलता भी है। 


भर राजा के शोक में 572  साल बाद भी नहीं मनाई जाती है  होली


राजा डलदेव की मौत के करीब 572 साल हो गए है लेकिन इस क्षेत्र के लोग आज भी भर राजा की याद में होली नहीं मनाते हैं। डलमऊ क्षेत्र के करीब 50 गांवों मे आज भी होली नही मनाते बल्कि भर राजा की याद मे शोक मनाते है  ! आज भी शोक की परंपरा है। सभी गांवों के लोग तीन दिन का शोक मनाते है। अन्य स्थानों से विपरीत यहां के लोग तीन दिन कोई भी उत्सव नहीं मनाते है। रिश्तेदार के यहा भी आना जाना बंद कर देते है औरते अपने जेवर तक निकाल कर रख देती है होली बितने के 3 दिन बाद ही सिंगार करती है यहां का माहौल पूरी तरह से अलग रहता है।तीन दिन के शोक के  बाद ही होली का पर्व यहां के लोग मनाते हैं। देश में जहां लोग इस दिन होली के जश्न में डूबे  रहते है वही डलमऊ क्षेत्र के लोग भर राजा की याद मे शोक मे डुबे रहते है ! 


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