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भर राजा बिजली का पासीकरण । इतिहासकार एम बी राजभर ने क्या कहा ?


महाराजा बिजली राजभर

सम्मानित साथियो, 

सुप्रभात , मै इतिहासकार एम बी राजभर 

बारहवीं शताब्दी में लखनऊ में राजा बिजली के साम्राज्य का पता चलता है। इस राजा की जाति का उल्लेख कहीं कहीं भर लिखा है और कहीं पासी लिखा है। इसी भ्रम के कारण "भर/राजभर साम्राज्य" नामक अपनी पुस्तक के प्रथम प्रकाशन ( सन् 1999 ई., मुंबई) में मैनें यह प्रकरण छोड़ दिया था। परन्तु इस प्रकरण पर मेरा शोध कार्य जारी रहा। मैंने लखनऊ में स्थित बिजली के किले का अवलोकन भी किया और C A Elliott B C S के ग्रंथ "The Chronicles Of Oonao" का अन्य दस्तावेजों सहित जब गंभीरता से अध्ययन किया तब इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बिजली राजा की जाति भर ही है। तत्पश्चात जब "भर/राजभर साम्राज्य" का पुनर्प्रकाशन सन् 2015 ई. में नई दिल्ली से कराया गया तब राजा बिजली भर का एक पाठ उसमें जोड़ा गया और लखनऊ के दारुल सफा के कामन हाल में भर और पासियों की एक संयुक्त बैठक तारीख 29-06-2018 को की गयी। पासी लोगों का कहना था कि भर-पासी एक हैं हम लोगों ने कहा कि जब दोनों एक हैं तब बिजली का किला अकेले पासी कैसे ले लिए? बड़ा वाद- विवाद चला। हमारे समाज की उपस्थिति वहाँ बहुत कम थी। 


मैंने भर /राजभर साम्राज्य नामक पुस्तक के पुनर्प्रकाशन की एक प्रति माननीय सुखदेव राजभर जी के बड़गहन, आजमगढ़ आवास पर सन् 2015 में स्वयं ले जाकर दी और बिजली राजा के बिषय में बात किया कि उनकी जाति भर ही है। 


इतना होते हुए भी सन् 2020 में जब मुंबई की महाराजा सुहेलदेव राजभर जी की जयंती में माननीय जी का आगमन हुआ तब उनके द्वारा यह बयान देना कि बिजली पासी ही थे, भर नहीं, कितना उचित है? अपनी राजनीति चमकाने के लिए समाज के इतिहास को विवादित बना देना कितना उचित है? उन्होंनें क्या कभी भर-पासियों की संयुक्त बैठक कराकर इस प्रकरण को सुलझाने का प्रयास किया? सच तो यह है कि एक प्रतिष्ठित पद पर हो जाने के बाद जब संबंधित बिषय पर बोला जाता है तब अध्ययन कर बोला जाता है। 

Sukhdev Rajbhar & Ramachal Rajbhar


"समरथ को नहिं दोष गासाईं, रवि, पावक, सुरसरि की नाईं। "

-----रामचरितमानस

दूसरी बात यह कि माननीय जी वीडियो में यह बोल रहे हैं कि महाराजा सुहेलदेव राजभर जी का एक पाठ उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी कक्षा आठ की पठित पुस्तक में जोड़ा गया है। यह भी गलत बयानबाजी है। (कक्षा 8 की नहीं कक्षा 6 की पुस्तक में जोड़ा गया है). यह सब गलतियां इसलिए की जाती हैं कि ये समाज का वोट और सपोर्ट तो लेते हैं पर समाज के ज्वलंत मुद्दों पर बिलकुल लापरवाह हैं। अपने कैरियर के आगे करोड़ों विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। समाज की समस्याओं पर लच्छेदारभाषण देकर और उनका वोट लेकर अपने कैरियर को सुधारने-संवारने में लग जाते हैं। एक इमानदार व्यक्ति आज राजनेता नहीं बन सकता और एक राजनेता आज इमानदार नहीं होता। इसलिए जो समाज नेताओं के पीछे भागेगा वह समाज स्वयं अपना नुकसान करा लेगा। 


शिक्षा बोर्ड इलाहाबाद में हमारे अनुरोध पर माननीय राम अचल राजभर जी ने महाराजा सुहेलदेव राजभर जी का एक पाठ जोड़ने के लिए फाइल बनवाकर लिखा-पढ़ी कर लिया था। इसी बीच उनकी सरकार गिर गयी और फाइल इलाहाबाद में अग्रिम कार्यवाही के लिए पड़ी थी । उसी समय शिक्षा सत्र 2003-2004 के लिए जारी कक्षा 6 के पाठ्यक्रम में एक पुस्तक "भारत के महान व्यक्तित्व" में " महाराजा सुहेलदेव " नामक एक पाठ जोड़ा गया, जिसमें महाराजा की जाति कलहंस क्षत्रिय लिख कर छाप दी गयी। जब हमें शिक्षा बोर्ड द्वारा की गयी इस गलती का पता चला तो हमने बोर्ड से राष्ट्रीय राजभर सेवा संघ के माध्यम से पत्राचार किया परिणामस्वरूप मुझे उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड इलाहाबाद से फोन आया कि आप  यहाँ आकर अपना साक्ष्य प्रस्तुत करें। मैं और नवरसिया गांव, आजमगढ़ के रमेश राजभर जी, जो जे. बी.नगर, मुंबई में रहते थे, इलाहाबाद गये और सेन्सस आफ इन्डिया के वाल्यूम 16 के पृष्ट 216 की रिपोर्ट दिखाई। तब इस पुस्तक में संशोधन कर महाराजा की जाति भर, थारु अथवा राजपूत लिखा गया और वैसा ही आज भी उस पुस्तक में लिखा चल रहा है। 

 

साथियों! हमारे स्वजातीय नेतागण इतिहास संरक्षण और आरक्षण पर बिलकुल गंभीर नहीं हैं और न ही इन ज्वलंत मुद्दों पर कुछ करना चाहते हैं। वर्तमान समय में उतर प्रदेश सरकार के हमारे दोनों कैबिनेट मंत्री इन बिषयों पर कुछ करने को साफ मना कर चुके हैं। 


अब समाज और हमारे सामाजिक संघठनों को ही आगे आकर कुछ करना होगा। पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाज के कुछ लोग और संगठन उन्हीं नेताओं की खिदमत में लगे हुए हैं। राजनीतिक खेमेबाजी हो रही है जिसके परिणामस्वरूप समाज का भारी नुकसान हो रहा है्। मात्र कुछ लोगों के फायदे के लिए पूरे समाज का नुकसान हो रहा है। आप सब विद्वतजन इस पर निष्पक्षता से विचार करें और आगे का कार्यक्रम निर्धारित करें। 


धन्यवाद

एम बी राजभर (इतिहासकार) 

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