दो प्रसिद्ध ब्राम्हणों ने भरों के बारे में क्या लिखा है
नमस्ते भारत, जय सनातन, साथियों आप सभी को इस लेख के माध्यम से आज मैं आपको एक ऐसा खुलासा करने जा रहा हूं , जिसको लोग नहीं मानते हैं,लेकिन एक ना एक दिन मानेंगे। दो प्रसिद्ध ब्राम्हणों ने भर राजवंश के बारे में ऐसा क्या लिखा है।आइये देखते हैं एविडेंस "Races tribes and castes Province of Avadh by patrick carnegy" के पेज नम्बर 19 और 20 पर The Bhars रेस मे भरों के बारे में क्या लिखा है ।
यह मानने का कुछ कारण प्रतीत होता है कि क्षत्रियों ने, जैसा कि हम अब उन्हें देखते हैं, इन भागों में अपना पूर्ण विकास केवल मुसलमानों की विजय के साथ या उसके बाद ही प्राप्त किया, और तब से उन्होंने अपना वर्चस्व बनाए रखा है। ऐसा कहा जाता है कि राजपूत शक्ति और हिंदू भक्ति के सभी महान केंद्रों से मुस्लिम विजेताओं द्वारा खदेड़े जाने के बाद क्षत्रियों ने भागकर उत्तरी और दक्षिणी भारत के पहाड़ों और जंगलों में शरण ली और अन्य स्थानों के अलावा पूर्व की ओर अयोध्या में चले गए, जो उनका साम्राज्य का पूर्व केंद्र था। जहाँ से भरों ने उन्हें खदेड़ दिया था और वे जहां भी गए, वहां बस्तियां बना लीं।
श्री थॉमसन कहते हैं कि राम के समय में इन भागों के निवासी हमें राजभर के नाम से जानते हैं। सर हेनरी इलियट ने उन्हें "भारत की आदिवासी जातियों में से एक" घोषित किया है और अंत में सबसे बुद्धिमान देशी सज्जनों में से एक जो कि मैं अब तक मिला हूँ अवध ब्राह्मण दृढ़ता से पुष्टि करता है कि भर वास्तव में राजपूत थे। और मैंने इस बात की पुष्टि जाने-माने पंडितों से की है। इन सब बातों से मुझे लगता है कि यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि भर पूर्वी अवध के आदिवासी नहीं हैं, तो वे किसी भी तरह से राजपूत थे।
भर-राजपूत संबंध का एक और महत्वपूर्ण उदाहरण हदरगढ़ में अमेठिया कबीले में पाया जाता है। 1859 में लखनऊ जिले में मेरे द्वारा रखी गई डायरी का हवाला देते हुए, मैंने पाया कि वहाँ मोटे तौर पर कहा गया है कि जिस इलाके में मैं तब डेरा डाले हुए था, वहाँ के लोगों ने मुझे बताया था कि अमेठिया राजपूत "भरों के समान ही हैं।" मुझे लगता है कि सलेमपुर के एक बुद्धिमान तालुकदार चोधरी नवाब अली ने मुझे यह भी बताया था कि 300 साल पहले उनके पूर्वजों को दिल्ली के बादशाह से आदेश मिला था कि वे "भरों या अमेथियों को बाहर निकाल दें।
गोस्वामी तुलसीदास ने भरों के बारे में क्या लिखा है?
बचन कहे अभिमान के पारथ पेखत सेतु ।
प्रभु तिय लूटत नीच भर जय न मीचु तेहि हेतु ॥
भावार्थ - एक समय [श्री रामचन्द्र जी कृत रामेश्वर के पत्थर के] सेतु बन्धको देखकर अर्जुन ने अभिमान के वचन कहे कि श्री रामजी ने इतना प्रयास क्यों किया ? मैं उस समय होता तो सारा पुल बाणों से ही बाँध देता। इस अभिमानका फल यह हुआ कि भगवान् श्रीकृष्ण के परिवार की स्त्रियों को हस्तिनापुर ले जाते समय नीच भरों ने [उनको] लूट लिया, अर्जुन उनसे जीत नहीं सके और इस अपमान से उनका मरण हो गया।
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