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भर राजभर का व्यवसाय क्या है ? । भर राजभर वंश

 

भर राजभर का पारंम्परिक व्यवसाय क्या है

भर/राजभर समुदाय का पारंपरिक कोई व्यवसाय नहीं है। क्यों कि भर/राजभर एक शासक जाति रही है। ऐतिहासिक तौर पर भर एवं राजभर वंश उत्तर भारत के बड़े भूभाग में सैकड़ों वर्षों तक राज करता रहा, जिनके कई प्रमुख राजा हुए और जिन्होंने अलग-अलग कालखंडों में शासन किया। नीचे भर/राजभर का व्यवसाय, इनके राज्य का विस्तार, प्रमुख राजाओं की सूची तथा इनके शासनकाल की जानकारी भारत के विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर प्रस्तुत है।


 भर/राजभर का व्यवसाय क्या है 


भर या राजभर समाज का कोई पारंपरिक व्यवसाय तो नहीं है लेकिन लोकतंत्र आने के बाद इन्होंने अपना व्यवसाय कृषिकर्म और भूमि संरक्षण रहा है। इन्हें भूमि व जल संसाधनों के समुचित उपयोग के लिए, सिंचाई व्यवस्था, तथा भूमि उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रसिद्ध माना जाता है। साथ ही, इनका संबंध भारी संख्या में सेना, युद्धकला एवं शासन संचालन से भी रहा, इसी कारण इन्हें "राजभर" अर्थात "जो शासन करता है  कालांतर में समाज के बदलते ढर्रे के साथ अनेक राजभर लोग शिल्प, हस्तकला, एवं अन्य स्थानीय पेशों में भी सक्रिय रहे।


 धार्मिक एवं सांस्कृतिक योगदान


1- शिव-पूजा, विशेषकर शिवलिंग का कंधे पर धारण करना भर/राजभर संस्कृति की विशिष्ट पहचान रही है जिससे इन्हें "भारशिव" क्षत्रिय कहा गया।

2- दशाश्वमेध यज्ञ एवं काशी के दशाश्वमेध घाट की स्थापना भी इन्हीं से जोड़कर देखी जाती है।


 शासन और नेतृत्व


1- भर समाज केवल कृषक व श्रमजीवी ही नहीं, बल्कि सैन्य नेतृत्व और स्वयं शासक भी रहा है।

2-  संवत 150 ई. से 1488 ई. तक लगभग 1400 वर्ष तक भर/राजभर वंश ने अवध (उत्तर प्रदेश), मध्यप्रदेश, बिहार, एवं आस-पास के राज्यों में शासन किया।


कब-कब और कहाँ राज किया


भर राजाओं का साम्राज्य अवध, काशी (वाराणसी), लखनऊ, लखीमपुरखीरी, सीतापुर, श्रावस्ती, बिजनौर, कन्नौज सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य क्षेत्र में विभिन्न समयों पर फैला रहा।

- 150 ई. से 1488 ई. तक भर/राजभर वंश के विभिन्न राजाओं ने अलग-अलग क्षेत्र में निरंतर शासन किया।

- ग्यारहवीं शताब्दी में महान भर राजा सुहेलदेव ने बहराइच व निकटवर्ती क्षेत्र में मुस्लिम आक्रांताओं को हराकर अपना राज्य कायम किया।

- भर/राजभर का कई स्थानों पर राज्य रहा, जिसका उल्लेख लखीमपुर खीरी, लखनऊ, सीतापुर, रायबरेली, कन्नौज, और बिजनौर आदि के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।  


 कितने राजा हुए व उनका सूची


भर-राजभर वंश में समय-समय पर कई विख्यात राजा हुए, जिनका उल्लेख ऐतिहासिक अभिलेख में इस प्रकार मिलता है।


 राजा का नाम                 कालखंड (ई.)                 राज्य/क्षेत्र                  

 राजा धौरहरा राजभर           900                    लखीमपुरखीरी             


 राजा लाखन राजभर            1000            लखनऊ (संस्थापक)         

राजा कंस देव राजभर            अज्ञात      कमलाहार, मलीहाबाद,                                                                   लखनऊ

 राजा सुहेलदेव राजभर           1021          सुहेलवा वन, बहराइच      

 राजा सातन राजभर                1170            सातनकोट, कन्नौज          

 महाराजा विजली राजभर         1170       बिजनौर नगर, लखनऊ        

 राजा क्षितादेव राजभर             1030                 सीतापुर                   

 राजा ह्नश देव राजभर               1280             महोली, सीतापुर 

          

राजा लहुरा वीर राजभर              1374            लहरपुर, सीतापुर 

 

 राजा डालदेव राजभर                 1390               रायबरेली                   

 राजा बालचन्द राजभर                अज्ञात           भरौली, रायबरेली         


राज पाट कब तक किया


1- ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, भर/राजभर वंश ने लगभग 1400 वर्षों (150 ई. से 1488 ई. तक) तक शासन किया। इस काल में कई छोटे-बड़े राजा हुए जिन्होंने शासन व्यवस्था को संचालन दिया।

- अंतिम प्रमुख राजा महोली क्षेत्र के राजा ह्नश देव तथा रायबरेली के राजा डालदेव रहे। इनके बाद राजभरों का स्वतंत्र राज समाप्त हुआ और अन्य राजवंशों द्वारा क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया गया।



 निष्कर्षं


भर/राजभर समाज भारत के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण शासनकर्ता समाज माना जाता है। इनका राज्य खासतौर पर अवध, लखनऊ, वाराणसी, बहराइच, सीतापुर, रायबरेली इत्यादि में लगभग पंद्रह सौ वर्षों तक फैला रहा। समाज के श्रेष्ठ राजा जैसे महाराजा सुहेलदेव ने न केवल शासन बल्कि राष्ट्ररक्षा, समाज-सुधार व धार्मिक योगदान में ऐतिहासिक पहचान कायम की।

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